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पिछले 12 साल से सुरक्षा बलों का यह मानना था कि उन्होंने कश्मीर से जैश-ए-मोहम्मद को साफ कर दिया है. अंदाजा यह भी था कि एक के बाद एक हुए हमलों में जैश-ए-मोहम्मद के कई टॉप के लीडर मारे गए हैं. लेकिन 14 फरवरी को हुए आतंकी हमले में यह साफ हो गया कि कश्मीर में उनकी जड़ें अब भी मजबूत है. जैश-ए-मोहम्मद का फाउंडर मौलाना मसूद अजहर पाकिस्तान की जमीन और चीन की छत्रछाया में है.1994 में मसूद अजहर ने एक महीना कश्मीर में बिताया था. भारत को कई बार जैश-ए-मोहम्मद की आतंकी गतिविधियों का खामियाजा भुगतना पड़ा है. 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले से लेकर जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हमला. सितंबर 2016 के उरी अटैक से लेकर 14 फरवरी के पुलवामा अटैक तक. घाटी में जैश ने ही फिदायीन हमलों की शुरुआत की थी. विस्फोटकों के साथ किसी कार को गाड़ियों से भिड़ा देने की रणनीति भी जैश की ही है जैसा पुलवामा में भी हुआ था. पिछले कुछ समय में कश्मीर में जो भी हमले हुए हैं उनमें जैश का हाथ होने की ही आशंका है. पुलवामा अटैक ऐसे समय में हुआ है जब अफगानिस्तान में तालीबान बातचीत के लिए आगे आ रहा है. इस बातचीत में पाकिस्तान मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है. तालीबान के साथ जैश के नजदीकी संबंध हैं. लिहाजा कश्मीर पर हमले से जैश अफगान में बातचीत की तैयारी कर रहे लोगों को एक संदेश देना चाहता है. सुरक्षा बलों के मुताबिक, घाटी में जैश तीसरा सबसे बड़ा आतंकी ग्रुप बन गया है. इसके अलावा हिज्बुल मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयबा है. लेकिन पिछले 2 साल के दौरान कश्मीर में हुए सभी बड़े आतंकी हमलों में जैश का हाथ है. पिछले एक साल में जैश के कई टॉप लीडर कश्मीर में मारे गए. लेकिन हालिया हमले को देखकर यह साफ है कि जैश की ताकत कमजोर नहीं हुई है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पुलिस रिकॉर्ड के हिसाब से घाटी में 56 आतंकी ऑपरेट कर रहे हैं. इनमें 23 स्थानीय और 33 बाहर से हैं. इनमें से 21 आतंकी उत्तरी कश्मीरी में ऑपरेट कर रहे हैं जिनमें से 19 विदेशी हैं. दक्षिणी कश्मीर में जैश के 35 आतंकी ऑपरेट कर रहे हैं जिनमें 21 स्थानीय हैं. माना जाता है कि मध्य कश्मीर के गांदरबल, श्रीनगर और बडगाम में जैश की कोई पकड़ नहीं है. मसूद अजहर का सफर पाकिस्तान के पंजाब के बहावलपुर में मसूद अजहर का जन्म हुआ था. वह हरकत-उल-अंसार का हिस्सा था. कश्मीर में दाखिल होने से पहले वह अफगानिस्तान में रूसी सैनिकों के खिलाफ लड़ रहा था. 2000 में कांधार हाइजैकिंग में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जिन आतंकियों को रिहा किया था उनमें मसूद अजहर भी था. माना जाता है कि मसूद अजहर ने उसके तुरंत बाद जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया था. कुछ महीने बाद जैश ने घाटी में एक फिदायीन हमले के साथ एंट्री की. तब 17 साल का एक लड़का विस्फोटक से भरी मारुति लेकर श्रीनगर में आर्मी हेडक्वार्टर में ब्लास्ट करने जा रहा था. हालांकि घबराकर उस युवक ने पहले ही ट्रिगर दबा दिया और हेडक्वार्टर के गेट पर ही विस्फोट हो गया. माना जाता है कि मसूद अजहर ने उसके तुरंत बाद जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया था. कुछ महीने बाद जैश ने घाटी में एक फिदायीन हमले के साथ एंट्री की. तब 17 साल का एक लड़का विस्फोटक से भरी मारुति लेकर श्रीनगर में आर्मी हेडक्वार्टर में ब्लास्ट करने जा रहा था. हालांकि घबराकर उस युवक ने पहले ही ट्रिगर दबा दिया और हेडक्वार्टर के गेट पर ही विस्फोट हो गया. 2000 में ही क्रिसमस के दिन 24 साल के एक ब्रिटिश नागरिक को विस्फोटक से भरी मारुति कार में आर्मी हेडक्वार्टर भेजा गया. उस हादसे में सेना के 5 जवान सहित 11 लोग मारे गए थे. इसके बाद जैश के ऑफिशियल पब्लिकेश जरब-ए-मोमिन में बॉम्बर की प्रोफाइल छपी थी. इन हमलों के साथ ही यह साफ हो गया कि जैश के काम करने का तरीका लश्कर-ए-तैयबा से अलग है. लश्कर-ए-तैयबा आत्मघाती हमले नहीं कराता था क्योंकि इस्लाम में आत्महत्या की मनाही है.लश्कर से जैश एक और मायने में अलग है. वह यह है कि तालीबान के साथ जैश के गहरे संबंध हैं. अमेरिका पर 9/11 हमले के एक महीने के भीतर 1 अक्टूबर 2001 को जैश ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर फिदायीन हमला करवाया. घाटी में आतंकी गतिविधियां शुरू होने के 12 साल बाद आत्मघाती हमला हुआ था. तब पाकिस्तान ने इसकी आलोचना भी की थी. जैश ने तब आत्मघाती हमलावर के बारे में बताया था कि वह पाकिस्तानी है और उसका नाम वजाहत हुसैन था. उस वक्त के पाकिस्तानी प्रेसिडेंट परवेज मुशर्रफ पर दो बार हमले की कोशिश बेकार होने के बाद जैश ने पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों से मिलने वाला सपोर्ट भी खो दिया. 2004 में भारतीय सुरक्षा बलों को मिली एक खबर की मदद से जैश के टॉप के लीडर एक साथ मारे गए. उस वक्त जैश के सभी नेता एकसाथ बैठक कर रहे थे. जैश को फिर से मजबूत होने में एक दशक से भी ज्यादा वक्त लगा क्योंकि लगातार उसके लीडर मारे जा रहे थे. मार्च 201 1 में जैश का कश्मीर चीफ सज्जाद अफगानी अपने साथी उमर बिलाल के साथ डल लेक के किनारे मारा गया. तीन महीने बाद जैश का एक और आतंकी मारा गया. इसके बाद जैश ने स्थानीय लोगों का ग्रुप बनाया जिसका चीफ अल्ताफ बाबा था. जुलाई 2013 में अल्ताफ बाबा मारा गया. इसके बाद नवंबर 2015 में LOC पर जैश का हमला हुआ. इसे 'अफजल गुरु स्क्वायड' का बताया गया था. लेकिन जैश के इस दावे पर आर्मी और पुलिस, किसी को भरोसा नहीं हुआ. सुरक्षा बलों का मानना है कि अगस्त 2016 में हिज्बुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान कुपवाड़ा और पूंछ के रास्ते जैश के दो ग्रुप ने घुसपैठ किया था. जैश का फोकस कश्मीर के स्थानीय युवाओं को जोड़कर इन्हीं के जरिए फिदायीन हमला करवाने पर रहा है. 2018 के अंत तक जैश ने कश्मीर के विवाद में स्नाइपर हमले को भी शामिल कर लिया. अक्टूबर 2018 में सुरक्षा बल जैश के स्नाइपर स्क्वायड को खत्म करने की कोशिश कर रहे थे तब यह पता चला कि इसका टॉप कमांडर मसूद अजहर का भतीजा उस्मान हैदर है.
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