Review: पुराना करिश्मा दोहराने में नाकाम रही The Lion King, फर्स्ट हॉफ रहा बोरिंग

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निर्देशक: जॉन फेवरोऊ
संगीतकार: हांस जिमर
निर्माता: जॉन फेवरोऊ, करेन गिलक्रिस्ट, जेफ़री सिल्वर
समय: 2 घंटा 52 मिनट
स्टार: 3/5 स्टार्स

आज की भागमदौड़ भरी लाइफ में किसी ना किसी मोड़ पर हम बचपन की यादों में खो जाते हैं। कभी स्कूल की पढ़ाई से लेकर गली मोहल्ले की शैतानी और टीवी पर आने वाले कार्यक्रम। आज भी सभी हमारी यादों में ताजा है। 90 के दशक में एनिमेटड फिल्म 'द लॉयन किंग' भी इन्ही यादों का हिस्सा है। फिल्म ने जंगल और वहां रहने वाले जानवारों को इतनी खूबसूरती से दिखाया था कि आज तक लोग इस नहीं भूल पाए हैं। ऐसे लोगों के लिए खुशी की सौगात लेकर आई है इस हफ्ते रिलीज हुई फिल्म 'द लॉयन किंग।' यह फिल्म इस बार सिर्फ अपनी कहानी की वजह से ही नहीं बल्कि हिंदी डबिंग की वजह से भी चर्चा में रही। दरअसल इस फिल्म के हिंदी वर्जन में शाहरुख खान और उनके बेटे आर्यन खान ने मुसाफा और सिंबा की आवाज दी है।

 

कहानी
गौरवभूमि में मुसाफा का राज है। उसकी सत्ता में सभी जानवर खुश हैं। मुसाफा के नियम-कायदों के चलते पूरे जंगल में कमजोर से कमजोर जानवर रह सकता है। उसका एक शैतान और प्यारा बेटा है , जिसका नाम है सिंबा। बचपन से ही उसे यह बात पता होती है कि आगे चलकर उसे ही जंगल का राजा बनना है। इसके लिए वह पिता के सामने खुद को साबित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता है। हालांकि इस प्रयास में वह कई बार मुसीबत में भी फंस जाता है। लेकिन हर बार उसके पिता हीरो की तरह आकर उसकी जान बचा लेते हैं। लेकिन बाप-बेटे की जान का दुश्मन होता है मुसाफा का भाई। वह जंगल की सत्ता हथिया चाहता है। इसके लिए वह कई पेंतरे अपनाता है। चाचा की इन साजिशों के चलते सिंबा को काफी कठनाईयाों का सामना करना पड़ता है।

 

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रिव्यू
पहले हॉफ में फिल्म कुछ धीमी रही। कहानी को स्थापित करने की कोशिश में निर्देशक ने कहानी में थोड़ी ढील छोड़ दी। हालांकि दूसरे हॉफ में कहानी थोड़ी गति पकड़ती है लेकिन पूरी फिल्म में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला जिसपर दर्शक तालियां पीटने लगे या फिर बच्चे उत्सुकता से उछल पड़े। कुल मिलाकर यह बस वन टाइम फिल्म बन कर ही रहा गई। जो बचपन को फिर एक बार जीने की चाहत रखने वाले युवाओं और बच्चों को ही थोड़ा बहुत आकर्षित कर सकती है।



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