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नई दिल्ली। कला एक ऐसा क्षेत्र है जहां लोग मर के भी अमर हो जाते हैं। अपनी कलाकारी के जरिए वो लोगों के दिमागों के साथ-साथ दिलों में भी जिंदा रहते हैं। हिंदी सिनेमा जगत में कई ऐसे दिग्गज कलाकार हैं जिन्हें आज की पीढ़ी अपना आइडल मानती है। गुज़रे जमाने के कई ऐसे किरदार हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है। फिल्म इंडस्ट्री का एक चालू सास और झगडालू औरत का किरदार हम जब भी याद करते हैं तो हमारे दिमाग में बस एख ही तस्वीर उभर कर सामने आती है और वो ललिता पवार की होती है। जी हां,आज बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री ललिता पवार ( Lalita Pawar ) की 104वीं जयंती है। इस खास मौके पर हम आपको बताएंगे उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से।
जन्म
दिग्गज अभिनेत्री ललिता पवार का जन्म 18 अप्रैल को हुआ था। बेहद ही कम लोग जानते होंगे कि ललिता पवार का असली नाम अंबा था। उनका जन्म मुंबई में हुआ था। नासिक के एक धनी परिवार की पुत्री थी ललिता।
करियर की शुरूआत
ललिता ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम करना शुरू कर दिया था। उनकी पहली एक मूक फिल्म थी। इस फिल्म से उन्हें 18 रुपये की कमाई हुई थी।
हादसा जिसने बदल दी पूरी जिंदगी
सन् 1942 में फिल्म जंग-ए-आजादी ( Jang-e-azadi ) की शूटिंग चल रही थी। इस फिल्म में ललिता पवार भी काम कर रही थीं। फिल्म में एक सीन था, जहां पर अभिनेता भगवान दादा ( Bhagwan Dada ) को ललिता को एक थप्पड़ मरना होता है। सीन रोल हुआ एक्शन बोलते ही भगवान दादा ने एक जोर का थप्पड़ ललिता को जड़ दिया और वो फट से जमीन पर गिर गई। ललिता के कान से खून बहने लगा। सेट पर खड़े लोग यह देख डर गए। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टर की एक गलती ने उनके खूबसूरत चेहरे को बिगड़ दिया। इलाज के दौरान उन्हें डॉक्टर ने गलत दवाई दे दी। जिसके बाद ललिता के दाहिने हिस्से को लकवा मार गया। बिगड़ी शक्ल देख निर्माताओं ने कई फिल्मों से उन्हें निकाल दिया। कुछ समय तक ललिता छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक पूरी तरह से गायब हो गई।
सन् 1948 में फिर स्टार बनकर कर उभरी
हिंदी सिनेमा जगत में खूबसूरती के कई मायने हैं। हर लड़की का सपना बस टॉप की हीरोइन बनना होता है। लेकिन बिगड़ी शक्ल के साथ ललिता पवार के इस सपने पर ब्रेक लग गया था। सन् 1948 में उन्हें एक साथ दो फिल्मों में काम करने का मौका मिला। इन दोनों ही फिल्मों में ललिता ने हीरोइन नहीं बल्कि फिल्म ‘दहेज’ ( Dahej ) में लालची सास और फिल्म ‘गृहस्थी’ ( Grihasti ) में दयालु मां का किरदार निभाया था। इन दोनों ही फिल्मों से उन्होंने अपनी जिंदगी की नई शुरूआत की। दोनों की फिल्में जबरदस्त हिट हुई। फिल्म ‘गृहस्थी’ ने डायमंड जुबिली मनाई। सभी को ‘गृहस्थी’ फिल्म में ललिता के उदार मां का किरदार बेहद ही पसंद आया।
फिल्म ‘गृहस्थी’ के लिए मिला पुरस्कार
गृहस्थी फिल्म में बेहतरीन काम के लिए ललिता को सम्मानित किया गया। आयोजित प्रोग्राम में बालासाहेब गंगाधर खेर ( BalaShaheb Gangadhar Kher ) को बुलाया गया था। उस वक्त खेर मुंबई प्रांत के प्रधानमंत्री का पद संभालते थे। ललिता पवार को सम्मानित करते हुए खेर ने उन्हें सोने के सितार से नवाज़ा था। ये पुरस्कार पाकर वो बहुत ही खुश थी।
मंथरा
90 के दशक में आई ‘रामायण’ ( Ramayana ) में ‘मंथरा’ के किरदार से ललिता को काफी नाम मिला। टेढ़ी आंख, कूबड़ के साथ झुकी कमर और हाथ में लाठी। मंथरा के किरदार में आज भी ललिता पवार की टक्कर का कोई नहीं मिल पाया। आज फिर से दूरदर्शन में 23 साल बाद रामायण का प्रासरण हो रहा है। आज भी दर्शकों को मंथरा के रूप में ललिता का किरदार खूब पसंद आ रहा है।
1998 में ली अंतिम सांस
दिग्गज अभिनेत्री ललिता पवार का देहांत भी एक फिल्मी कहानी की तरह ही हुआ। उन्होंने राजप्रकाश गुप्ता ( Raj Prakash Gupta ) संग शादी कर ली थी। पेशे से वो निर्माता और निर्देशक थे। अचानक से उनकी तबीयत खराब हो गई थी। जिसेक चलते हुए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहीं उनका बेटा अपने परिवार संग मुंबई में था। एक दिन जब उनेक बेटे ने उन्हें फोन किया। लेकिन किसी के फोन ना उठाने पर जब वो घर पहुंचे तो दरवाज़ा लॉक होने की वजह से पुलिस ने आकर उसे तोड़ दिया। दरवाजा खुलने पर सामने ललिता पवार का शव पड़ा हुआ था। इस तरह एक बेहतरीन अभिनेत्री ने इस दुनिया को अलविदा कहा।
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