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-दिनेश ठाकुर
धर्मेश दर्शन का दिल शशि कपूर और नंदा की पुरानी फिल्म 'जब-जब फूल खिले' की कहानी पर आया, तो उन्होंने इसी नाम से फिल्म नहीं बनाई, 'राजा हिन्दुस्तानी' (आमिर खान, करिश्मा कपूर) बनाई। इसमें जमाने के हिसाब से नए रंग भरे। बरसों पहले इसी तरह का कारनामा महबूब खान ने अपनी 'औरत' (1940) को 'मदर इंडिया' (1957) के नाम से बनाकर किया था। 'राजा हिन्दुस्तानी' और 'मदर इंडिया' मिसाल हैं कि अगर सलीका हो, तो रीमेक मूल फिल्म से बेहतर हो सकता है। डेविड धवन ( David Dhawan ) की नई फिल्म 'कुली नं. वन' देखते हुए बार-बार महसूस होता रहा कि इसमें सलीके से कुछ नए रंग भरने की कोशिश की जाती, तो यह उनकी 25 साल पहले की 'कुली नं. वन' ( Coolie No 1 ) से बेहतर हो सकती थी। लेकिन कुछ नया करने के बजाय उन्होंने मूल फिल्म के मसाले ही फिर परोस दिए। जिन्होंने गोविंदा की मूल फिल्म नहीं देखी है, उन्हें यह रीमेक थोड़ा-बहुत बहला सकता है। इसमें वे तमाम अटपटे-चटपटे मसाले हैं, जिनके लिए डेविड धवन नब्बे के दशक में मशहूर थे और उनसे पहले मनमोहन देसाई का बड़ा नाम था। 'कुली नं. वन' के टाइटल के दौरान बजे गाने में मनमोहन देसाई को याद भी किया गया है- 'मनमोहन देसाई की फिल्मों की तरह बिछड़ गई मेरी मैया।'
'बेइज्जती अच्छी भी होती है'
नई 'कुली नं. वन' आलीशान बंगले में शुरू होती है, जहां नायिका (सारा अली खान) ( Sara Ali Khan ) के रईस पिताश्री (परेश रावल) रिश्ते के लिए आए एक लड़के के परिवार को पानी-पानी कर रहे हैं। उन्हें अपनी बेटी के लिए इतना रईस खानदान चाहिए, जो सब्जियां खरीदने के लिए भी चार्टर्ड विमान में जाता हो और जिसके पास कई देश कर्ज मांगने आते हों। रिजेक्ट किए गए लड़के की मां खरी-खोटी सुनने के बाद कहती है- 'अच्छी बेइज्जती की आपने हमारी।' परेश रावल अपने 'बाबूराव' के अंदाज में आ जाते हैं- 'बेइज्जती अच्छी भी होती है, यह तो मुझे आज पता चला।' आगे वही किस्सा कि इनकी बेटी एक कुली (वरुण धवन) ( Varun Dhawan ) को दिल दे बैठती है। कुली खुद को बड़ा रईस बताकर उससे शादी कर लेता है। लेकिन उसका यह झूठ कब तक छिपा रहेगा?
दिमाग लगाने की जरूरत नहीं
डेविड धवन की फिल्मों में न तर्क खोजे जाने चाहिए और न दिमाग पर 'ये क्या हुआ, कैसे हुआ' को लेकर जोर डालना चाहिए। दिमाग को आराम देते हुए, जहां हंसी आए, हंस लीजिए और जहां हद से ज्यादा धुप्पल हो, वहां फॉरवर्ड का बटन दबा दीजिए। ओटीटी पर यह सुविधा बड़ी अच्छी है। कहानी की तरह डेविड धवन के पास यूं भी यहां दिखाने के लिए नया कुछ नहीं था। गानों की धुनें तक उन्होंने अपनी पुरानी फिल्म से जस की तस उठा ली हैं। एक गाने का फिल्मांकन उनकी 'आंखें' के 'अंगने में बाबा' की याद दिलाता है। 'बड़े मियां छोटे मियां', 'राजा बाबू' और 'जुड़वां' की धुनें भी पूरी फिल्म में बजती रहती हैं।
गोविंदा ज्यादा सहज कुली थे
बेशक यहां मूल फिल्म के गोविंदा की तरह कुली के किरदार में वरुण धवन ज्यादा सहज नहीं लगते, लेकिन उनकी अदाकारी ठीक-ठाक है। खासकर 'तुझे मिर्ची लगी', 'हट जा सामने से तेरी भाभी खड़ी है', 'मम्मी कसम' और 'गोरिया चुरा न मेरा जिया' में वे सारा अली के साथ तबीयत से नाचे हैं। सारा अली को खास कुछ करना नहीं था। डेविड धवन ने जितनी चाबी भरी, उन्होंने उतना नाच कर दिखा दिया। परेश रावल ओवर होकर भी कुछ जगह गुदगुदाते हैं, लेकिन जब रघुवीर यादव ओवर होते हैं, तो मामला बर्दाश्त से बाहर हो जाता है। बाकी कलाकारों का काम ठीक-ठाक है। हां, एक सीन में जब जावेद जाफरी कहते हैं- 'मेरा स्वाभिमान ही मेरा अभिमान है', तो समझ में नहीं आया कि जनाब क्या कहना चाहते हैं।
ट्रेन के आगे वरुण का दो बार दौडऩा
यह फिल्म आपको झकाझक धुले हुए लाल कुर्ते और सफेद पाजामे वाले रेलवे के ऐसे अनुशासित कुली दिखाती है, जो पूरे देश के किसी स्टेशन पर नजर नहीं आएंगे। सभी नाचने में भी परफेक्ट हैं। उधर प्लेटफॉर्म पर पंजिम एक्सप्रेस खड़ी है और इधर कुली वरुण धवन के साथ ठुमके लगा रहे हैं। अपने पुत्र पर डेविड धवन किसी फार्मूले की आजमाइश नहीं छोडऩा चाहते। 'गुलाम' के आमिर खान की तर्ज पर 'कुली नं. वन' में उन्होंने वरुण धवन से एक बार नहीं, दो बार सामने से आती ट्रेन के आगे दौड़ लगवा दी। ताली बजाइए, क्योंकि आप डेविड धवन की फिल्म देख रहे हैं।
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