'12 'O' Clock' हॉरर नहीं, 'हॉरिबल' तमाशा, इस फिल्म से कई गज की दूरी बहुत जरूरी

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-दिनेश ठाकुर

कोरोना फैलने से काफी पहले रामगोपाल वर्मा ( Ram Gopal Varman ) की फिल्मों को लेकर 'सोशल डिस्टेंसिंग' का पालन होने लगा था। जिन सिनेमाघरों में उनकी फिल्में दिखाई जाती थीं, उनसे लोग कई गज दूर रहते थे। पिछले कुछ साल में उन्होंने इस कदर बचकाना और फूहड़ फिल्में बनाईं कि किसी वर्ग ने इनमें दिलचस्पी नहीं दिखाई। हैरानी होती है कि 'सत्या' और 'शूल' बनाने वाले फिल्मकार की 'फैक्ट्री' (यह रामगोपाल वर्मा की कंपनी का नाम है) में ऐसी फिल्मों का उत्पादन होने लगा, जिनके सिर-पैर समझ में नहीं आते। उनकी नई फिल्म '12 ओ क्लॉक' ( 12 'O' Clock Movie ) भी हॉरर के नाम पर बेसिर-पैर का तमाशा है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इससे पहले पर्दे पर नहीं देखा गया हो। कहानी निहायत फुसफुसी है। पटकथा में झोल ही झोल हैं। जो कसर रह गई थी, रामगोपाल वर्मा के लचर निर्देशन ने पूरी कर दी।

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अंधविश्वास में लिपटी कहानी
अंधविश्वास में लिपटी इस फिल्म की शुरुआत में गौरी (कृष्णा गौतम) नाम की लड़की रात को अचानक बिस्तर से उठकर इधर-उधर डोलना शुरू कर देती है। उसके माता-पिता, दादी और भाई खर्राटे भर रहे हैं। वह अजीब ढंग से आंखें घुमाकर, मुंह बनाकर इस कमरे से उस कमरे में घूमती रहती है। हॉरर पैदा करने के लिए बैकग्राउंड म्यूजिक का सहारा लिया गया। फिर भी हॉरर पैदा नहीं होता। आगे पता चलता है कि एक सीरियल किलर की रूह ने इस लड़की के शरीर पर कब्जा कर रखा है। जाहिर है, अब तांत्रिक (आशीष विद्यार्थी) की एंट्री होगी। मनोचिकित्सक (मिथुन चक्रवर्ती) की पनाह ली जाएगी। डॉक्टर (अली असगर) को दिखाया जाएगा। जब ये सब हाथ खड़े कर देते हैं, तो लड़की का पिता (मकरंद देशपांडे) यह बताने थाने पहुंच जाता है कि शहर में जो हत्याएं हो रही हैं, उसकी बेटी कर रही है। बताने की जरूरत नहीं कि थाने का इंचार्ज वही एनकाउंटर स्पेशलिस्ट है, जिसने दो साल पहले सीरियल किलर का सफाया किया था। कहानी पहले भी बिना बात गोल-गोल घूम रही थी। आगे भी इसी तरह घूमती हुई क्लाइमैक्स पर जाकर ढेर हो जाती है।

आधी फिल्म के बाद आए मिथुन और मानव
इस बेजान कहानी में तमाम कलाकारों से जितनी ओवर एक्टिंग हो सकती थी, उन्होंने तबीयत से की है। मिथुन चक्रवर्ती और मानव कौल की एंट्री आधी फिल्म के बाद होती है। तब तक ओवर एक्टिंग का मोर्चा मकरंद देशपांडे, कृष्णा गौतम और अली असगर संभाले रहते हैं। बाद में मिथुन और मानव भी ओवर एक्टिंग का रेकॉर्ड तोडऩे में जुट जाते हैं। गोया सभी में होड़ थी कि कौन ज्यादा फेल-फक्कड़ कर सकता है। बेटी को सीरियल किलर की रूह से आजाद करने के लिए इस फिल्म में माता-पिता ने जो कुछ किया, वह शायद ही दुनिया में किसी ने किया होगा। यानी जो कहीं नहीं हुआ, वह '12 ओ क्लॉक' में हो गया।

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तकनीक के मोर्चे पर भी कमजोर
तकनीकी नजरिए से भी '12 ओ क्लॉक' बेहद कमजोर फिल्म है। कैमरा पूरी फिल्म में अजीब ढंग से घूमता रहता है। कभी इसके चेहरे पर, कभी उसके चेहरे पर, कभी दीवार पर तो कभी सीधे सड़क पर। कुछ पल्ले नहीं पड़ता कि पर्दे पर जो हो रहा है, वह क्यों और किसके लिए हो रहा है। अपशब्दों का इस्तेमाल धड़ल्ले से हुआ है। थोड़ा-बहुत इल्म रामगोपाल वर्मा को भी था कि कहानी में दम नहीं है। इसलिए उन्होंने कैमरे के एंगल बदल-बदलकर और कर्कश बैकग्राउंड के जरिए हॉरर पैदा करने की कोशिश की है। लेकिन बात नहीं बनी। हॉरर के बदले यह 'हॉरिबल' (भयंकर) उबाऊ फिल्म बनकर रह गई। वैसे वर्मा के लिए इस तरह का यह पहला तजुर्बा नहीं है। उनकी 'फूंक' और 'वास्तु शास्त्र' भी उबाऊ फिल्में थीं। '12 ओ क्लॉक' उनसे चार कदम आगे है।

० फिल्म : 12 'ओ' क्लॉक
० रेटिंग : 1.5/5
० अवधि : 1.52 घंटे
० लेखक, निर्देशक : रामगोपाल वर्मा
० फोटोग्राफी : अमोल राठौड़
० संगीत : एम.एम. किरवानी
० कलाकार : मिथुन चक्रवर्ती, मानव कौल, फ्लोरा सैनी, कृष्णा गौतम, मकरंद देशपांडे, आशीष विद्यार्थी, दिलीप ताहिल, अली असगर आदि।



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