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-दिनेश ठाकुर
चीनी कहावत है, 'हजार मील के सफर का आगाज एक कदम से होता है।' अगर यह कदम जमाने की रफ्तार के साथ मिल जाए, तो क्या कहने। बतौर निर्देशक 'अंदाज' (1971) ( Aandaz Movie ) रमेश सिप्पी ( Ramesh Sippy ) का पहला कदम थी। जैसे पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, फिल्म देखकर लोगों को भरोसा हो गया था कि यह फिल्मकार फार्मूला फिल्मों को नए आयाम देगा। 'अंदाज' के चार साल बाद रमेश सिप्पी की 'शोले' ( Sholay Movie ) ने जो तूफान उठाया, उसके बारे में सभी जानते हैं। कहा जा सकता है कि 'शोले' के लिए टीम का सूत्रपात तभी हो गया था, जब 'अंदाज' बन रही थी। यह फिल्म सलीम-जावेद ने लिखी थी। इस जोड़ी को पहला मौका राजेश खन्ना ( Rajesh Khanna ) की सिफारिश पर 'हाथी मेरे साथी' में मिला था। उन दिनों कामयाबी के सुनहरे रथ पर सवार राजेश खन्ना को क्या पता था कि यही जोड़ी अमिताभ बच्चन के लिए 'जंजीर' लिखकर उनके रथ की रफ्तार को गड़बड़ा देगी।
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भीड़ खींचने वाला चुम्बक
'अंदाज' 2021 में प्रदर्शन के 50 साल पूरे कर रही है। इन 50 साल में दुनिया काफी बदल चुकी है। नई पीढ़ी को यह 'एक्सपायरी डेट' वाली फिल्म लग सकती है, लेकिन अपने जमाने में यह सिनेमाघरों में भीड़ खींचने वाला चुम्बक साबित हुई थी। तब फिल्में राजेश खन्ना के नाम से चलती थीं। इसे भांपते हुए रमेश सिप्पी ने शम्मी कपूर ( Shammi Kapoor ) और हेमा मालिनी ( Heman Malini ) की इस फिल्म में राजेश खन्ना का 10 मिनट का किरदार जोड़ दिया। शायद यह इकलौती हिन्दी फिल्म है, किसी मेहमान भूमिका ने जिसका बेड़ा पार कर दिया। कहानी खालिस फिल्मी है। हेमा मालिनी के पति (राजेश खन्ना) की हादसे में मौत हो जाती है। शम्मी कपूर भी पत्नी (सिमी ग्रेवाल) को खो चुके हैं। अपने-अपने बच्चों के जरिए दोनों मिलते हैं और 'है न बोलो बोलो' का सिलसिला शुरू होता है। यही कहानी थोड़ी हेर-फेर के साथ बाद में संजीव कुमार और राखी की 'हमारे तुम्हारे' (1979) में दोहराई गई।
शंकर-जयकिशन की लोकप्रिय धुनें
'अंदाज' की कामयाबी में राजेश खन्ना की मेहमान भूमिका के साथ-साथ शंकर-जयकिशन की लोकप्रिय धुनों का बड़ा हाथ रहा। नौजवानी की तरंगों वाले 'जिंदगी इक सफर है सुहाना' की धूम कश्मीर से कन्याकुमारी तक सीमित नहीं रही, सरहदें और समंदर लांघकर कई देशों तक पहुंच गई। इस गीत के लिए हसरत जयपुरी को फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। 'अंदाज' के दो और गानों 'रे मामा रे मामा रे' और 'दिल उसे दो जो जां दे दे' की गूंज आज भी बरकरार है। रमेश सिप्पी की बाद की ज्यादातर फिल्मों (सीता और गीता, शोले, शान, शक्ति, सागर) का संगीत आर.डी. बर्मन ने दिया। 'भ्रष्टाचार' और 'अकेला' में उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को भी आजमाया।
बतौर नायक शम्मी कपूर की आखिरी फिल्म
शंकर-जयकिशन की तूफानी कामयाबी का सफर 'अंदाज' के बाद शायद आगे भी जारी रहता, लेकिन 1971 में ही जयकिशन के देहांत ने इन संभावनाओं पर पूर्ण विराम लगा दिया। हालांकि शंकर बाद में भी फिल्मों में संगीत देते रहे। 'मेरा नाम जोकर' के बाद राज कपूर की फिल्मों की शैली बदली, तो उनके संगीत का रूप-रंग भी बदल गया। 'बॉबी', 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्', 'प्रेम रोग' का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया। 'राम तेरी गंगा मैली' और 'हिना' में रवीन्द्र जैन को मौका मिला। बहरहाल, 'अंदाज' बतौर नायक शम्मी कपूर की आखिरी फिल्म रही। राजेश खन्ना की मेहमान भूमिका को मिली वाहवाही ने उन्हें संकेत दे दिए थे कि उन्हें चरित्र भूमिकाओं की तरफ मुड़ जाना चाहिए।
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