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-दिनेश ठाकुर
गालिब फरमाते हैं,'मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहे जिस वक्त/ मैं गया वक्त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं।' जो दुनिया में हैं, उनके बारे में तो यह सलाह मुफीद लगती है। जो दुनिया छोड़ चुके हैं, उन्हें कैसे बुलाया जाए? फिल्म वाले बरसों से इस पहेली पर सिर धुन रहे हैं। किसी कलाकार के देहांत के बाद उसकी अधूरी फिल्म को पूरा करना अपने आप में यक्ष प्रश्न है। पिछले साल सुशांत सिंह राजपूत के देहांत के बाद अधूरी 'दिल बेचारा' से जुड़े लोगों को भी इससे जूझना पड़ा। उन्होंने आखिरी हिस्सा बदलकर फिल्म डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डाल दी। इसमें क्लाइमैक्स से पहले ही सुशांत का किरदार अचानक गायब हो जाता है। इस किरदार के साथ क्या हुआ होगा, यह दर्शकों की कल्पनाओं पर छोड़ दिया गया।
काफी शूटिंग हो चुकी थी
'दिल बेचारा' वाली मुश्किल ऋषि कपूर की अधूरी 'शर्माजी नमकीन' को लेकर खड़ी हुई। हितेश भाटिया के निर्देशन में बन रही इस फिल्म की काफी शूटिंग हो चुकी थी कि पिछले साल ऋषि कपूर दुनिया से कूच कर गए। काफी माथापच्ची के बाद फिल्म को मुकम्मल करने का रास्ता निकाला गया है। फिल्म में एक किरदार कर रहे परेश रावल बाकी हिस्सों में ऋषि कपूर का किरदार भी अदा करेंगे। यानी आइना वही रहेगा, चेहरा बदल जाएगा। कुछ हिस्सों में वीएफएक्स तकनीक का सहारा लिया जाएगा, ताकि लॉन्ग शॉट्स में किसी और को देखकर लगे कि पर्दे पर ऋषि कपूर हैं। यह प्रयोग दर्शकों को कितना भाएगा, देखना बाकी है। फिल्म में जूही चावला और सतीश कौशिक के भी अहम किरदार हैं। अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इसे सितम्बर में सिनेमाघरों में उतारा जाएगा।
किरदार का अचानक गायब होना
अधूरी फिल्मों को पूरा करने के तरह-तरह के प्रयोग कई साल से आजमाए जा रहे हैं। राजेश खन्ना के देहांत के बाद उनकी अधूरी 'रियासत' (2014) भी सुशांत की 'दिल बेचारा' की तरह जैसे-तैसे पूरी की गई। यही तरीका संजीव कुमार की 'प्रोफेसर की पड़ोसन' में आजमाया गया। इसके आखिरी हिस्सों में संजीव कुमार का किरदार अचानक गायब हो जाता है। 'दिल बेचारा' में मामला धकिया गया, क्योंकि सुशांत के किरदार का आगे क्या होगा, यह काफी हद तक साफ हो चुका था। 'प्रोफेसर की पड़ोसन' में संजीव कुमार का अचानक गायब होना लोगों को हजम नहीं हुआ। यही मसला संजीव कुमार की 'लव एंड गॉड' में दरपेश था। यह फिल्म कई साल से अटकी पड़ी थी। संजीव कुमार के देहांत के करीब छह महीने बाद इसे जैसे-तैसे पूरा कर सिनेमाघरों में उतारा गया। दर्शकों ने पहले ही दिन फिल्म को खारिज कर दिया।
लडख़ड़ा जाती है कहानी
छोटे-मोटे किरदार की तस्वीर पर माला चढ़ाकर फिल्म की कहानी आगे बढ़ सकती है, लेकिन अहम किरदार की गैर-मौजूदगी से पूरी कहानी लडख़ड़ा जाती है। मधुबाला के देहांत से अधूरी रही 'ज्वाला' में यह लडख़ड़ाहट साफ महसूस हुई। यह फिल्म मधुबाला के देहांत के तीन साल बाद सिनेमाघरों में पहुंची और बुझ गई। इसके संवाद राजिन्दर सिंह बेदी ने लिखे थे।
ब्रूस ली के देहांत के बाद भी आई थी उलझन
तकनीक के जरिए पर्दे पर भ्रम रचना अब आसान हो गया है। सत्तर के दशक में फिल्म तकनीक इतनी विकसित नहीं थी। कराटे के सुपर सितारे ब्रूस ली के देहांत के बाद उनकी अधूरी फिल्म 'गेम ऑफ डेथ' को हॉलीवुड वालों ने उनकी कद-काठी वाले कलाकार को लेकर पूरा किया। इस कलाकार के चेहरे पर ब्रूस ली का गत्ते का मास्क लगाकर काम चलाया गया।
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