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मुंबई। एक्ट्रेस माही विज की बेटी हाल ही 18 महीने के हुई है। ऐसे में माही ने कोरोना महामारी के बीच बच्चों के पालन—पोषण और कोरोना की तीसरी लहर को लेकर बात की है। एक्ट्रेस का कहना है कि जब उन्होंने कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की खबर पढ़ी तो चिंतित हो गईं।
'बच्ची को कहां ले जा सकते हैं?'
माही विज का कहना है कि उन्होंने इस बार मदर्स डे नहीं मनाया क्योंकि इस महामारी के दौरान कई बच्चों को माता—पिता तोे कई पैरेंट्स को अपने बच्चों को खोना पड़ा। ईटाइम्स से बातचीत में माही ने कहा जब उन्होंने कोविड—19 की तीसरी लहर के बारे में पढ़ा तो जय से ये पूछा कि वह अपनी बेटी तारा को कहां ले जाए जहां वह सेफ रहे। बेटी के लिए कोरोना महामारी में सुरक्षा का सवाल डराता है के प्रश्न पर माही ने कहा,'हां, क्योंकि मुझे एक मैसेज मिला कि अब एनआईसीयू (नियोनेटल इंटेनसिव केयर यूनिट) बेड्स और पीआईसीओ बेड्स की व्यवस्था की जा रही है। ये सब इसलिए हो रहा है कि तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने का अंदेशा है। इसलिए मैं करीब आधे घंटे के लिए इमोशनल हो गई। मैं रोने लगी और जय से पूछा कि बच्ची को कहां ले जा सकते हैं? मेरी बच्ची कहां सेफ रहेगी? मैं अपनी बच्ची को एनआईसीयू बेड में नहीं देखना चाहती क्योंकि मैंने उसे जन्म के समय 1 महीने के लिए एनआईसीयू बेड में देखा है। ये मेरे लिए बहुत मुश्किल समय था। अब ये एक बार फिर मुश्किल होने वाला है। मैं इतना कर सकती हूं कि उसे घर से बाहर न जाने दूं, लोगों से नहीं मिलने दूं। मुझे उसके लिए और मेरे पैरेंट्स के लिए अपना सामाजिक जीवन छोड़ना पड़ेगा।
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एक माह तक बच्ची रही एनआईसीयू में
माही विज ने बेटी के जन्म के समय एनआईसीयू का जो नजारा देखा उसे याद करते हुए बताया कि जब मैंने देखा कि मेरी बच्ची एनआईसीयू में जीवन के लिए लड़ रही है, जब हम बड़ी उम्र के लोग भी इंजेक्शन से डर जाते हैं, मेरी बेटी को ट्यूब और इंजेक्शन रोज दिए जाते थे। रोज उसके स्वास्थ्य की जांच होती थी कि वह सही से सांस ले पा रही है या नहीं। मुझे नहीं पता था कि वे मुझे एक बार बेबी को दिखाएंगे और कहीं और ले जाकर इलाज करेंगे। क्योंकि उसका जन्म 7 महीने में ही हो गया था। मुझे पता था कि उसका जन्म जल्दी हो रहा है, इसलिए एक मां की नजर से दिल कह रहा था कि बहुत कुछ होगा। मैंने इसके लिए खुद को तैयार कर लिया था। लेकिन इतने छोटे बच्चे को जो कि 1.15 किलोग्राम का हो, उसे एनआईसीयू ले जाया गया हो। हम और माताओं के बच्चों को भी देखते थे, उससे ताकत मिलती थी। मैं रोज तारा को स्तनपान कराने के लिए अस्पताल जाया करती थी, लेकिन डॉक्टर्स वहां रूकने से मना कर देते थे। शुरूआत में, मैं बहुत रोती थी और वे मुझे समझाते थे कि अगर आप रोओगे तो तारा की इच्छा शक्ति टूट जाएगी। उस दौर ने मुझे सिखाया कि जब एक छोटा बच्चा अपने जीवन के लिए संघर्ष कर सकता है, तो मैं वो साहस क्यों नहीं दिखा रही हूं।'
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