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पुलवामा आतंकी हमले के बाद सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. सरकार ने जम्मू कश्मीर में हुर्रियत नेताओं को मिली सुरक्षा वापस लेने का निर्णय लिया है. इसके तहत उनसे सरकारी गाड़ियां भी वापस ली जाएंगी. साथ ही अलगाववादियों को अब कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी. सरकार ने अपने आदेश में कहा है कि किसी भी अलगाववादी नेता को अब कोई सुरक्षा मुहैया नहीं कराएंगे. अगर उन्हें सरकार की तरफ से कोई अन्य सुविधा भी मिली है, तो वह भी तत्काल प्रभाव से वापस ले ली जाएगी. इस फैसले के बाद अब मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी बट, बिलाल लोन, शब्बीर शाह और हाशिम कुरैशी की सुरक्षा वापस ले ली गई है. मीरवाइज उमर फारूक ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के संगठन का नाम अवामी एक्शन कमेटी है. अवामी एक्शन कमेटी की शुरुआत उनके पिता मीरवाइज मौलवी फारूक ने किया था. हालांकि 21 मई 1990 में आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी थी. पिता की मौत के बाद से ही मीरवाइज उमर फारूक को सुरक्षा प्रदान है. साल 2015 के बाद उनकी सुरक्षा को जेड प्लस में बढ़ा दिया गया था. हालांकि साल 2017 में एक डीएसपी को राष्ट्रविरोधी हिंसक तत्वों ने मार गिराया था, जिसके बाद इनकी सुरक्षा में कमी लाई गई थी. साल 2014 में वह विश्व के 500 सर्वाधिक प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की लिस्ट में शामिल हो चुके हैं. अब्दुल गनी बट अब्दुल गनी बट मुस्लिम कॉन्फ्रेंस कश्मीर के अध्यक्ष हैं. जब हुर्रियत दो गुटों में बंटी तो मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के नेतृत्व वाली उदारवादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के साथ ही बने रहे. हुर्रियत के प्रमुख प्रवक्ता के तौर पर भी अब्दुल गनी बट रह चुके हैं. आतंकियों ने उनके एक भाई की हत्या भी कर दी थी. कश्मीर मसले पर हमेशा बातचीत के पक्षधर रहे बट को सरकारी सुरक्षा के तौर पर चार सुरक्षाकर्मी मिले हैं. बिलाल लोन पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन और पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन के भाई बिलाल गनी लोन हैं. बिलाल गनी के पिता अब्दुल गनी लोन ने 1978 में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का गठन किया था. बिलाल मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के करीबियों में गिने जाते हैं. पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का नाम बदलकर पीछे ही उन्होंने जम्मू कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट रखा है. सुरक्षा के तौर पर उन्हें सरकार की तरफ से छह से आठ पुलिसकर्मी और एक सिक्योरिटी वाहन मिला है. शब्बीर शाह शब्बीर शाह कश्मीर के पुराने अलगाववादियों में गिने जाते हैं. शब्बीर शाह ने 1960 के दशक के आखिर में अलगाववादी संगठन यंगमैन लीग के साथ अपने सफर की शुरुआत की थी. कश्मीर के नेल्सन मंडेला के तौर पर शाह को जाना जाता है. शब्बीर शाह काफी बार जेल भी जा चुके हैं. साल 2016 में कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शनों और कश्मीर में आतंकी फंडिग के कारण वो तिहाड़ जेल में बंद है. शब्बीर चार-छह पुलिसकर्मियों के साथ ही गाड़ी भी मिली थी. हाशिम कुरैशी 1984 में तिहाड़ में फांसी पर लटकाए गए मकबूल बट के करीबी हाशिम कुरैशी जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सदस्यों में एक हैं. 1971 में उन्होंने ही इंडियन एयरलाइस के विमान गंगा को अपने साथियों संग हाईजैक कर लाहौर में उतारा था. साल 1994 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक लिबरेशन पार्टी का गठन किया था. कुरैशी कई बार कश्मीर की आजादी की वकालत कर चुके हैं. वह पाकिस्तान में काफी देर रहे और उसके बाद हालैंड चले गए. वर्ष 2000 के दौरान वह भारत आए. उनके चार बच्चे हैं. एक बेटा जुनैद कुरैशी अक्सर संयुक्त राष्ट्र में अक्सर कश्मीर मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए नजर आता है.
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