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नई दिल्ली। 30 अप्रैल 1870 को दादा साहेब का जन्म हुआ था। वैसे ये बात बेहद ही कम लोग जानते हैं कि दादा साहेब का असली नाम धुंधिराज गोविंद फाल्के था। दादा साहेब को भारतीय सिनेमा का जन्मदाता कहा जाता है। अब आप ये तो जान गए होगें कि ये पुरस्कार एक व्यक्ति के नाम पर आधारित है लेकिन ये हस्ती है कौन? इसने भारतीय फिल्म जगत को कैसे पहचान दिलाई, चलिए जानते हैं इन प्वाइंट्स के साथ
1913 में दादा साहेब ने 'राजा हरीशचंद्र' नाम की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म बनाई थी। दादा साहेब सिर्फ एक डायरेक्टर ही रूप में नहीं बल्कि एक जाने मान प्रोड्यूसर और स्क्रीन राइटर भी थे। दादा साहेब ने मात्र 19 साल की उम्र में 95फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाई थीं। दादा साहेब की पहली फिल्म 'राजा हरीशचंद्र' की फुल लेंथ फीचर फिल्म का बजट 15 हज़ार रुपए था।

जैसे कि हमने पढ़ा दादा साहेब ने कई फिल्में बनाईं लेकिन एक फिल्म उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बन गई। जी हां, ‘द लाइफ ऑफ क्रिस्ट’ उनके करियर की सबसे बड़ी फिल्म मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस फिल्म को बनाने के लिए दादा साहेब ने अपनी पत्नी से पैसे उधार लिए थे।

दादा साहेब ने पहली बार महिलाओं को फिल्मों में काम करने का मौका दिया। उनकी एक फिल्म ‘भस्मासुर मोहिनी’ में पहली बार दो औरतों ने काम किया था जिनका नाम दुर्गा और कमला था।

दादा साहेब की आख़िरी मूक फिल्म सेतुबंधन थी। इस फिल्म के बाद दादा साहेब फाल्के ने 16 फरवरी 1994 इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

भारतीय सिनेमा में दादा साहब के ऐतिहासिक योगदान के चलते 1969 से भारत सरकार ने उनके सम्मान में 'दादा साहब फाल्के' अवार्ड की शुरुआत की गई थी। आपको बता दें कि दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। गौरतलब है कि सबसे पहले देविका रानी चौधरी को यह पुरस्कार मिला था।

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