उस डायरेक्टर की कहानी, जिसने सलमान खान को दी थी पहली सुपरहिट फिल्म

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ये 1947 की बात है. इसी साल देश को आजादी मिली थी. 33 साल के ताराचंद बड़जात्या ने राजश्री प्रोडक्शन की शुरूआत की. ये इतना आसान काम नहीं था. अपने सपने को कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाने में उन्हें लंबा वक्त लगा. असली पहचान मिली 1964 में रिलीज फिल्म दोस्ती से. फिल्म दोस्ती उस साल की बड़ी हिट हुई. 6 फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने के साथ साथ फिल्म ने अच्छा बिजनेस भी किया. इसके बाद राजश्री प्रोडक्शन की हिट फिल्मों में उपहार, गीत गाता चल, चित्तचोर, सावन को आने दो, अंखियों के झरोखे से, नदिया के पार और सारांश जैसी फिल्में गिनी जा सकती हैं. 1970 और 80 के दशक के आते आते राजश्री प्रोडक्शन ने फिल्म इंडस्ट्री में काफी नाम कमा लिया था. ताराचंद बड़जात्या अपने बेटे राजकुमार बड़जात्या के साथ मिलकर खूबसूरत फिल्में बना रहे थे. लेकिन मायानगरी कभी कभी बड़े तेज झटके भी देती है. राजश्री प्रोडक्शन के साथ भी ऐसा ही हुआ. 80 के दशक के आखिरी सालों में राजश्री प्रोडक्शन के हालात बिगड़ने लगे. स्थिति इतनी बिगड़ गई कि लगा राजश्री प्रोडक्शन को बंद करना पड़ेगा. ऐसे मुश्किल वक्त में राजकुमार बड़जात्या ने अपने 24 साल के बेटे सूरज बड़जात्या को कमान सौंपी. पिता के साथ साथ दादा भी हौसला बढ़ाने के लिए मौजूद थे. किस्मत ने एक बार फिर पलटी खाई. 24 साल के बेटे की मेहनत और साफ नीयत ने एक ऐसी फिल्म बनाई जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गई. वो फिल्म थी मैंने प्यार किया. आज उसी कमाल की हिट फिल्म को बनाने वाले सूरज बड़जात्या का जन्मदिन है. 22 फरवरी 1964 को मुंबई में जन्मे सूरज बड़जात्या ने मुंबई और ग्वालियर से अपनी पढ़ाई की. घर में फिल्म की समझ रखने वाले थे ही लिहाजा सूरज ने भी इसी दुनिया को चुना. उन्होंने महेश भट्ट के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया. बाद में 1989 में उन्होंने फिल्म- मैंने प्यार किया बनाई. इसी फिल्म ने सुपरस्टार सलमान खान को भी नया जन्म दिया. फिल्म की कामयाबी को ऐसे समझा जा सकता है कि इस फिल्म को 35वें फिल्मफेयर अवॉर्ड में 12 नॉमिनेशन मिले. इसमें से 6 अवॉर्ड फिल्म की झोली में गए. सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ संगीतकार, सर्वश्रेष्ठ गीतकार, सर्वश्रेष्ठ गायक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (डेब्यू) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (डेब्यू) ये सारे अवॉर्ड सूरज बड़जात्या की झोली में गए. जाहिर है राजश्री प्रोडक्शन को एक नई जिंदगी मिल चुकी थी. इस शानदार कामयाबी को देखने के बाद ताराचंद बड़जात्या ने दुनिया को अलविदा कहा. लेकिन जाते जाते वो अपनी अगली पीढ़ी को ये संदेश देकर गए कि बाकि सारे ताम-झाम एक तरफ हैं लेकिन लोग फिल्म ही देखने आते हैं. इसलिए जो मेहनत करनी है वो फिल्म पर करनी चाहिए. इसी सीख पर सूरज बड़जात्या आज भी चल रहे हैं. उन्हें इस बात का अहसास है कि राजश्री प्रोडक्शन की फिल्में देखने के लिए लोग क्यों सिनेमा हॉल में जाते हैं और वो वही कहानियां बनाते हैं जो उनकी ताकत है. सूरज बड़जात्या खुद ही कहते हैं कि उनके बैनर की फिल्मों को देखने के लिए भले ही आप अपनी गर्लफ्रेंड के साथ ना जाएं लेकिन आप अपनी बहन, मां या दादी के साथ उनकी फिल्म देखने जरूर जाएंगे. मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन, हम साथ साथ हैं, विवाह, प्रेम रतन धन पायो जैसी फिल्मों के नाम जानकर आप भी ये बात मानेंगे कि राजश्री प्रोडक्शन की ‘फैमिली फिल्में’ ही उसकी यूएसपी हैं. ऐसा नहीं है कि बतौर डायरेक्टर सूरज बड़जात्या का और तरह की फिल्में करने का मन नहीं करता. उन्होंने कोशिश की लेकिन वो कोशिश नाकाम रही. 2003 में रिलीज फिल्म मैं प्रेम की दीवानी हूं इसी बात का सबूत है. करीना कपूर, ऋतिक रोशन और अभिषेक बच्चन जैसे स्टार को लेकर बनाई गई ये फिल्म बॉक्सऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई थी. दिलचस्प बात ये है कि इस फिल्म के दौरान सूरज बड़जात्या के पिता ने उन्हें समझाया था कि वो फिल्म पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं लेकिन सूरज नहीं माने. फिल्म के फ्लॉप होने के बाद सूरज बड़जात्या को उनके पिता ने संभाला. उन्होंने सूरज को एक फिल्म की कहानी देते हुए कहाकि वो इस फिल्म को बनाएं फिल्म जरूर चलेगी. इस बार पिता की भविष्यवाणी सही साबित हुई. सूरज बड़जात्या की अगली फिल्म विवाह बहुत हिट हुई. सूरज खुद बताते हैं कि एक रोज वो अपने पिता के साथ घर में ही खड़े हुए थे. सामने उनके प्रोडक्शन की बनी फिल्मों के पोस्टर लगे थे. पिता ने उस रोज बड़ी पते की बात बताई, उन्होंने कहा कि देखो जो जो फिल्में बनाने में हमें मजा आया वो फिल्में सफल हुईं. यानि फिल्मों की सफलता का मूलमंत्र है कि पहले निर्माता-निर्देशक को मजा आना चाहिए. करीब 30 साल के फिल्मी करियर में सूरज बड़जात्या ने सिर्फ 6-7 फिल्में बनाई हैं. वो अपनी फिल्मों को बनाने में समय लेते हैं. बीच में उन्होंने छोटे पर्दे के लिए कई सीरियल्स भी बनाए. बतौर निर्देशक सूरज बड़जात्या की आखिरी फिल्म थी- प्रेम रतन धन पायो. इस फिल्म का किस्सा बड़ा मजेदार है. इस फिल्म की कहानी और नाम सुनने के बाद सूरज बड़जात्या को कोई लोगों ने समझाया कि ये फिल्म नाम से बड़े पुराने समय की लग रही है. यहां तक कि सलमान खान ने जब पहली बार फिल्म के बारे में सुना तो कहा कि अगर सूरज बड़जात्या की जगह कोई और ये नाम लेकर उनके पास आया होता तो वो उसे बाहर भिजवा देते. लेकिन बाद में सलमान, अनुपम खेर और हिमेश रेशमिया के कहने पर सूरज बड़जात्या इसी नाम के साथ आगे बढ़े. आगे की कहानी कामयाबी के इतिहास में दर्ज है. जब प्रेम रतन धन पायो बनी उस समय सलमान एक फैमिली फिल्म करना भी चाहते थे. जिसके लिए उन्होंने भी इंतजार किया. वजह सभी जानते हैं कि सलमान को पहली सुपरहिट फिल्म देने वाले सूरज बड़जात्या ही हैं. सूरज खुद बहुत विनम्र हैं, लोगों से प्यार से बात करते हैं. उनकी फिल्मों में भी उनकी यही ‘पर्सनालिटी’ दिखाई देती है.

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