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निर्देशक : अश्विन कुमार
कलाकार : जारा वेब,शिवम रैना,अश्विन कुमार,कुलभूषण खरबंदा,माया सराओ,सोनी राजदान,अंशुमान झा,नताशा मागो
मूवी टाइप : रियलिस्टिक ड्रामा
अवधि : 1 घंटा 50 मिनट
आखिरकार आलिया भट्ट की मां सोनी राजदान की फिल्म 'नो फादर्स इन कश्मीर' रिलीज होने जा रही है। निर्देशक अश्विन कुमार ने इस फिल्म के जरिए एक अलग कश्मीर की झलक दिखाने कोशिश की है। हाल ही में रिलीज हुई 'हामिद', 'नोटबुक' और अब 'नो फादर्स इन कश्मीर' कश्मीर घाटी का अलग चेहरा प्रस्तुत किया है। इस फिल्म में उन फादर्स, उन हस्बैंड्स और उन बेटों की कहानी दिखाई गई है जिन्हें आर्मी आंतकी मानकर उठा लेती है। फिल्म घाटी में गायब या आर्मी द्वारा घर से उठा लिए गए लोगों की दास्तान को दिल छूने वाले अंदाज में बयान किया गया।

कहानी —
इस फिल्म 16 साल की नूर (जारा वेब) के नजरिये से दिखाई गई है। नूर अपनी मां (नताशा मागो) और होने वाले सौतेले पिता के साथ अपने पुश्तैनी घर दादा-दादी (कुलभूषण खरबंदा) और (सोनी राजदान) के पास कश्मीर आती है। उसे बताया गया था कि उसके अब्बा उसे छोड़कर गए हैं। लेकिन बाद उसे पता चलता है कि उसके पिता आर्मी द्वारा उठा लिए गए हैं। उसके पिता के साथ—साथ कश्मीर में कई ऐसे परिवार हैं जिनके बेटे, पिता और भाई को आर्मी द्वारा उठा लिया गया है। इसके बाद उनकी पत्नियां आधी विधवा और आधी शादीशुदा जैसी जिंदगी बिताने को मजबूर हो जाती है। यहां माजिद (शिवम रैना) से उसकी मुलाकात होती है, उसके पिता भी गायब हैं।
माजिद और नूर को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है। नूर अपने अब्बा की कब्र को ढूंढते हुए माजिद को कश्मीर के उस प्रतिबंधित इलाके में ले जाती है, जहां आम लोगों का जाना मना है। जंगल और घाटी के इस रोमांचक सफर में नूर और माजिद रास्ता भटक जाते हैं और जब सुबह उनकी आंख खुलती है, तो खुद को आर्मी की गिरफ्त में पाते हैं। आर्मी के लोग उन्हें आतंकवादी मानकर टॉर्चर करते हैं। नूर तो अपनी ब्रिटिश नागरिकता के कारण वहां से निकल जाती है। लेकिन माजिद को आर्मी पकड़ लेती है। ऐसे में नूर माजिद को किस तरह से निर्दोष साबित करके वहां से निकाल पाएगी? यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।

फिल्म में दोनों लीड किरदार जारा वेब और शिवम रैना ने शानदार अभिनय किया है। किशोर लड़की नूर के किरदार में अपने मासूम एक्टिंग के जरिए जारा दर्शकों के दिलों पर छाप छोड़ जाएगी। वहीं माजिद ने भी अपने किरदार को बहुत खूबसूरती से निभाया है। दादा के रूप में कुलभूषण खरबंदा और दादी सोनी राजदान ने अपने किरदार के हिसाब से अच्छी परफॉर्मेंस दी है।
निर्देशक अश्विन कुमार तारीफ के काबिल हैं जो उन्होंने कश्मीर की जटिलता दिखाने के साथ-साथ वहां के रिश्तों की नाजुक डोर और मजबूरी की गांठें भी दिखाई है। फिल्म की शुरुआत बहुत अच्छी होती है लेकिन बीच में फिल्म अपना रास्ता खो देती है। आश्विन कुमार इससे पहले 'इंशाअल्लाह फुटबॉल' और 'इंशाअल्लाह कश्मीर' बना चुके हैं। अश्विन को दो नेशनल अवॉर्ड मिल चुका है, उनकी शॉर्ट फिल्म 'लिटिल टेररिस्ट' को ऑस्कर का नॉमिनेशन भी मिला था।
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